राजस्थान की 8 प्रमुख नदियां : राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग एक समतल क्षेत्र है। यदि हम ध्यान से देखें तो हम देखेंगे कि इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा मरुस्थल है, जिसमें बीकानेर, मारवाड़ और जैसलमेर के रेगिस्तान स्थित हैं। यह क्षेत्र उपजाऊ नहीं है। राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में कुछ स्थानों पर मैदानी भाग है। इस क्षेत्र में कई नदियाँ बहती हैं इसलिए यह क्षेत्र उपजाऊ माना जाता है।
हम इस लेख में आपको राजस्थान में बहने वाली कुछ प्रमुख नदियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं कृपया इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें
1. बनास नदी
- हमारे देश में नदियों का महत्व अपार है। इन नदियों में से एक बनास नदी है, जो राजस्थान राज्य की सबसे लम्बी नदी मानी जाती है।
- यह नदी राजस्थान के अंदर स्थित होने के कारण इसका महत्व इस राज्य में अधिक होता है।
- बनास नदी का अपवाह राजस्थान के भीतर 480 किलोमीटर तक होता है।
- बनास नदी को चंबल नदी की सहायक नदी के रूप में माना जाता है।
- इसकी लंबाई लगभग 512 किलोमीटर है।
बनास नदी का नामकरण
- बनास नदी का नाम “बनस” से लिया गया है। “बनस” शब्दिक अर्थ है “वन-होप” (बान-आस), जिसका अर्थ होता है “होप-ऑफ-द-फॉरेस्ट” या ‘वन की आशा’।
- यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि बनास नदी जंगलों के बीच बहती है और इसे एक प्राकृतिक वातावरण में घिरा हुआ महसूस किया जा सकता है।
बनास नदी का पथ
- बनास नदी राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ से लगभग 5 किलोमीटर दूर अरावली रेंज के खमनोर हिल्स में स्थित वेरोन का मठ में निकलती है।
- यह नदी राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र से होकर उत्तर पूर्व की ओर बहती है, फिर सवाई माधोपुर जिले के रामेश्वर गाँव के पास चंबल से मिलने से पहले हाड़ौती से निकलती है।
- इसके पास से गुजरने वाले लोगों को इस नदी की सुंदरता और शांति का अनुभव होता है।
2. रूपारेल नदी
- रूपारेल नदी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है।
- रूपारेल नदी अलवर के थानागाजी तहसील में स्थित उदयनाथ पहाड़ी से निकलती है।
- यह नदी अलवर में बहने के बाद भरतपुर जिले में कुशलपुर गांव के पास बहती है और वहां विलुप्त हो जाती है।
- इसे लसवारी, बारह, बराह नदी के नाम से भी जाना जाता है।
3. कोठारी नदी
- इस नदी का जन्म राजसमंद जिले में देवगढ़ के पास अरावली पहाड़ियों से हुआ है।
- कोठारी नदी रायपुर, मंडल, भीलवाड़ा और कोटड़ी का मार्ग तय करते हुए नंदराई में बनास नदी में विलीन हो जाती है।
- भीलवाड़ा जिले को कोठारी नदी पर बने मेजा बांध के द्वारा पानी पहुंचाया जाता है।
- यह नदी भीलवाड़ा जिले की पेयजल समस्या का समाधान करने का प्रयास कर रही है।
4. कांतली नदी
- कांतली नदी का जन्म सीकर की खंडेला पहाड़ियों से हुआ है।
- यह नदी सीकर और झुंझुनूं में बहते हुए आगे मंडेला गांव में अदृश्य हो जाती है।
- इस नदी को कांटली व मौसमी नदी के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
- इस नदी के किनारे नीम का थाना (सीकर) में गणेश्वर की सभ्यता स्थित है, जिसे ताम्रयुगीन सभ्यता की जननी कहा जाता है।
- तोरा वाटी क्षेत्र में बहने वाली यह नदी आंतरिक प्रवाह की दृष्टि से 100 किलोमीटर लंबी दूसरी लंबी नदी के रूप में व्याप्त है।
5. माही नदी
- माही नदी मध्य प्रदेश में स्थित मेहद झील से निकलती है।
- इस नदी का प्रवेश खांदू (बांसवाड़ा) में होता है और इसका प्रवाह क्षेत्र बांसवाड़ा और डूंगरपुर में फैला हुआ है।
- यह नदी 576 किलोमीटर लंबी है और राजस्थान में इस नदी की लंबाई 171 किलोमीटर हो जाती है।
- यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है और इसे आदिवासियों की गंगा, कांठल की गंगा, और दक्षिणी राजस्थान की गंगा भी कहा जाता है।
- माही नदी दक्षिण में प्रवेश करके दक्षिण में ही समाप्त होने वाली राजस्थान की एकमात्र नदी है।
- प्राचीन काल में इस नदी को पुष्प प्रदेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था।
- सोम, माही, और जाखम नदियों के संगम पर माघ पूर्णिमा को डूंगरपुर में बेणेश्वर मेला आयोजित होता है, जिसे आदिवासियों का कुंभ के रूप में मनाया जाता है।
6. बाणगंगा नदी
- यह नदी उदयपुर जिले में स्थित बैराट की पहाड़ियों से उत्पन्न हुई है।
- इसकी कुल लंबाई 380 किलोमीटर है और यह नदी अर्जुन की गंगा, ताला नदी, रुणित नदी के नाम से भी जानी जाती है।
- इस नदी के उद्गम स्थल से समापन स्थल तक कोई सहायक नदी नहीं है।
- यहां प्राचीन बैराठ सभ्यता भी स्थित है और भरतपुर में इस नदी पर अजान बांध बना हुआ है, जिससे घना पक्षी अभ्यारण को जलापूर्ति की जाती है।
7. लूनी नदी
लूनी नदी का महत्व
- यह नदी थार के मरुस्थल में सबसे उपयुक्त और सबसे लंबी नदी मानी जाती है।
- इसका उद्गम अजमेर और पुष्कर के मध्य स्थित एवं आनासागर झील है।
- राज्य के कुल अपवाह का 10.100% हिस्सा लूनी बेसिन का है।
- लूनी नदी चंबल नदी के बाद दूसरी सबसे बड़ी नदी मानी जाती है।
लूनी नदी का उद्गम और प्रवाह
- लूनी नदी जिस स्थान से निकलती है वहां इस नदी को साबरमती के नाम से संबोधित किया जाता है।
- गोविन्दगढ़ (अजमेर) में सरस्वती नदी से मिलन के पश्चात यह नदी लूनी नदी के नाम से प्रसिद्ध हो जाती है।
- लूनी नदी अजमेर, नागर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर और जालौर जिलों में बहकर ‘कच्छ के रन’ में प्रवेश करती है।
- यह नदी अधिक वर्षा होने पर कच्छा की खाड़ी में गिरती है।
- कुल लम्बाई 350 किमी है (राजस्थान में 330 किमी)।
लूनी नदी की सहायक नदियाँ
- लूनी नदी में मिलने वाली सहायक नदी के रूप में जोजड़ी नदी को माना गया है।
- इस नदी कच्छ के रन में प्रवेश करते समय इसे कई धाराओं में विभाजित होकर दलदल का निर्माण करती है।
- इस दलदली क्षेत्र को ‘नेहड़’ कहा जाता है।
लूनी नदी के प्रमुख नगर
लूनी नदी के किनारे निम्नलिखित नगर स्थित हैं:
- बिलाड़ा और लूनी जंक्शन (जोधपुर)
- समदड़ी
- बालोतरा
- तिलवाड़ा
- नाकोड़ा
- गुड़ामालानी (बाड़मेर)
8. चम्बल नदी
चम्बल नदी का महत्व
- चम्बल नदी प्राचीनतम नाम से चर्मावती भी जानी जाती है।
- चंबल नदी मध्य प्रदेश के मानपुर में स्थित जनापाव पहाड़ी से निकलती है।
- चंबल नदी चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है।
- यह नदी 113 किलोमीटर की दूरी तय करके कोटा पहुंचती है।
चम्बल नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ
चम्बल नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं:
- काली
- सिन्ध
- पार्वती
- बनास
- कुराई
- बामनी
चम्बल नदी के प्रमुख बांध
चम्बल नदी पर निम्नलिखित बांध हैं:
- गांधी सागर
- राणा प्रताप सागर
- जवाहर सागर
- कोटा बैराज बांध